राग हरिकौन्स

स्वर लिपि

स्वर रिषभ व पंचम वर्ज्य। गंधार व निषाद कोमल, मध्यम तीव्र। शेष शुद्ध स्वर।
जाति औढव-औढव
थाट काफी
वादी/संवादी गंधार/निषाद
समय रात्रि का दूसरा प्रहर
विश्रांति स्थान सा; ग१; ध; - ध; ग१; सा;
मुख्य अंग सा ,ध ,नि१ सा ; ग१ म् ग१ सा ; ग म् ध नि१ सा' - सा' नि१ ध म् ग१ सा ; ग१ म् ग१ सा ,नि१ सा ,ध ,नि१ ग१ सा;
आरोह-अवरोह सा ग१ म् ध नी१ सा' - सा' नी१ ध म् ग१ सा;

विशेष - राग हरिकौन्स मधुर किन्तु गाने में कठिन है, क्योंकि इसमें लगने वाले कोमल गंधार, कोमल निषाद और मध्यम तीव्र को आत्मसात करने के लिए बहुत रियाज़ की आवश्यकता होती है। मध्यम तीव्र इस राग को राग मालकौंस से एकदम अलग बनाता है। परन्तु इस मध्यम तीव्र को सही तरह से लगाने के लिए शिष्यगण और कलाकारों को गले को रियाज़ द्वारा तैयार करना होगा। यह स्वर संगतियाँ राग हरिकौन्स का रूप दर्शाती हैं -

सा ,नि१ ,ध ; ,ध ,नि१ ,ध ,म् ,ग१ ; ,ग१ ,म् ,ध ,नि१ ; ,नि१ ,नि१ सा ; सा ग१ म् ध नि१ सा' ; सा' नि१ ध नि१ ध म् ; ग१ म् ग१ सा ,ध ,नि१ सा ; ,नि१ सा ,ध ,नि१ ग१ सा ; सा ग१ म् ; म् म् ग१ म् ध ; म् म् ध ; ध नि१ नि१ ध ; ध म् ग१ म् ; ग१ ग१ सा ; सा' नि१ ध म् नि१ ध म् ग१ सा;