राग मालगुंजी

स्वर लिपि

स्वर आरोह में पंचम वर्ज्य। निषाद कोमल, गंधार दोनों। शेष शुद्ध स्वर।
जाति षाढव - सम्पूर्ण वक्र
थाट काफी
वादी/संवादी मध्यम/षड्ज
समय रात्रि का तीसरा प्रहर
विश्रांति स्थान म; सा;
मुख्य अंग ग म ग१ रे सा ; ,नि१ सा ; ,ध ,नि१ सा रे ग म ;
आरोह-अवरोह सा रे ग म ध नि१ सा' - सा' नि१ ध प म ; ग१ रे ; ग प म ; ग१ रे ग म ; ग१ रे सा ;

विशेष - राग मालगुंजी बहुत ही मीठा राग है। यह बागेश्री से मिलता जुलता राग है। आरोह में शुद्ध गंधार लगाने से यह राग बागेश्री से अलग होता है। इसमें आरोह में शुद्ध गंधार और अवरोह में कोमल गंधार का प्रयोग किया जाता है।

राग मालगुंजी की बन्दिशें - ये बन्दिशें आचार्य विश्वनाथ राव रिंगे 'तनरंग' द्वारा रचित हैं। निम्न सभी बंदिशों के गायक श्री प्रकाश विश्वनाथ रिंगे हैं।



1
बड़ा ख्याल - आगमन भयो सुखद अति शुभ
ताल - रूपक मध्य लय
प्रसंग - श्रृंगार रस
2
छोटा ख्याल - बालम हरजाई रे हरजाई
ताल - त्रिताल द्रुत
प्रसंग - विरह रस
3
छोटा ख्याल - गोपिन के संग डोले कान्ह सखी
ताल - त्रिताल द्रुत
प्रसंग - श्री कृष्ण - गोपियों से छेड़छाड़
4
छोटा ख्याल - मधु चांदनी धवल छाई
ताल - त्रिताल द्रुत
प्रसंग - रात्रि सौंदर्य
5
छोटा ख्याल - मोरे मन बस गई
ताल - त्रिताल द्रुत
प्रसंग - विरह रस
6
छोटा ख्याल - तकत तोरी बात पियरवा
ताल - त्रिताल द्रुत
प्रसंग - विरह रस